स्पेक्स का सेनेटाइजर टेस्टिंग अभियान
एल्कोहल की प्रतिशत मात्रा मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई
संवाददाता
देहरादून। स्पेक्स ने मई-जून में उत्तराखंड के सभी जिलों में सेनेटाइजर टेस्टिंग अभियान चलाया जिसमंे 1050 नमूनों में से 578 नमूनों में एल्कोहल की प्रतिशत मात्रा मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई। इस बात का खुलासा स्पेक्स संस्था के संस्थापक डा0 बृज मोहन शर्मा ने किया। उन्हांेने बताया कि कोरोना महामारी से बचने का मूल मंत्र भारत सरकार एवं अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी संस्थाओं ने यही समझाया की दिन में बार-बार एल्कोहल वाले सेनेटाइजर से हाथ साफ करने से कोरोना जैसे वायरस से बचाव संभव है। इस सुझाव के कारण बाजार में इसकी मांग बढ़ गयी और कुछ लोगों ने इसमें मानकों की अनदेखी करके सेनेटाइजर बाजार में बेचने शुरू कर दिए। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया को समझने के उद्देश्य से स्पेक्स ने अपने साथियों के साथ मिलकर उत्तराखंड के प्रत्येक जिले में एक अध्ययन 3 मई से 5 जुलाई तक किया गया।
नमूनों में एल्कोहल परसेंटेज के साथ साथ हाइड्रोजन पेरोक्साइड ,मेथेनाल और रंगो की गुणवत्ता का परिक्षण अपनी प्रयोगशाला में किया। यह प्रयोगशाला विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग भारत सरकार ने प्रदान की थी। इस अध्ययन में जो परिणाम प्राप्त हुए वे चौंकाने वाले थे। उन्होने बताया कि लगभग 56 प्रतिशत सेनेटाइजर में एल्कोहल मानकों के अनुरूप नहीं पाए गए। यानि 1050 नमूनों में 578 नमूने फेल पाए गए। 8 नमूनों में मेथेनाल पाया गया। लगभग 112 नमूनों में हाइड्रोजन पेरोक्साइड का प्रतिशत मात्रा मानकों से अधिक पायी गयी।
लगभग 278 नमूनों में टाक्सिक रंग पाए गए। डा0 शर्मा ने बताया कि अल्कोहल की प्रतिशत मात्रा 60-80 प्रतिशत होनी चाहिए। हाइड्रोजन पेरोक्साइड की मात्रा 0.5 परसेंट से ज्यादा न हो। मेथनाल नहीं होना चाहिए। उन्होंने बताया कि अल्मोड़ा जिले में 56 प्रतिशत, बागेश्वर में 48 प्रतिशत, चम्पावत में 64 प्रतिशत, पिथौरागढ़ में 49 प्रतिशत, उधमसिंहनगर 56 प्रतिशत, हरिद्वार 52 प्रतिशत, देहरादून 48 प्रतिशत, पौड़ी में 54 प्रतिशत, टिहरी में 58 प्रतिशत, रुद्रप्रयाग में 60 प्रतिशत, चमोली में 64 प्रतिशत, उत्तरकाशी में 52 प्रतिशत, नैनीताल में 56 प्रतिशत एलकोहल मानकों के अनुरूप नहीं था।
सेनेटाइजर में एलकोहल की पर्याप्त मात्रा नहीं होने के कारण भी उत्तराखंड में कोरोना के मरीजों की संख्या शायद बढ़ी हो। डा0 शर्मा ने बताया कि कृत्रिम रंग त्वचा पर विषाक्त पदार्थ छोड़ते हैं और आपकी संवेदनशीलता और जलन के जोखिम को बहुत बढ़ा देते हैं। यह रसायन शरीर में अवशोषित होकर अधिक नुकसान पहुंचा सकते हैं। वे त्वचा के छिद्रों को भी अवरुद्व कर सकते हैं, जिससे मुंहासों का अधिक खतरा होता है। हाइड्रोजन पेरोक्साइड भी लिपिड प्रति आक्सीकरण के माध्यम से एक सीधा साइटोटोक्सिक प्रभाव डाल सकता है।
उन्हांेने बताया हाइड्रोजन पेरोक्साइड के अंतर्ग्रहण से मतली, उल्टी, रक्तगुल्म और मुंह से झाग के साथ जठरांत्र संबंधी मार्ग में जलन हो सकती है। फोम श्वसन पथ को बाधित कर सकता है या फुफुसीय आकांक्षा में परिणाम कर सकता है। मेथनाल त्वचा को खराब भी कर सकता है, जिससे डर्मेटाइटिस हो सकता है। तीव्र मेथनाल एक्सपोजर के लक्षणों में सिरदर्द, कमजोरी, उनींदापन, मतली, सांस लेने में कठिनाई, नशे, आंखों में जलन, धुंधली दृष्टि, चेतना की हानि और संभवतः मृत्यु शामिल हो सकती है।
डा0 शर्मा के इस अभियान में नीरज उनियाल, चंद्र आर्य, राहुल मौर्य, योगेश भट्ट, डा0 अजय कुमार, शंकर दत्त, नरेश उप्रेती, सौम्या डबराल, अर्पण यादव, सुनील राणा, आशुतोष, राम तीरथ, डा0 शंभू नौटियाल, डा0 गुलशन ढींगरा, अधिराज पाल, यूपीईएस की छात्रा डा0 पारुल सिंघल शामिल थे।
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