14 साल बाद महंगी हो रही माचिस की डिब्बी
दाम बढ़ने में कच्चे माल की कीमतों का अहम रोल
प0नि0डेस्क
देहरादून। माचिस की कीमत 14 साल बाद दोगुनी हो रही है। एक दिसंबर 2021 से माचिस की एक डिब्बी के लिए 1 रुपए की जगह 2 रुपए खर्च करने होंगे। आखिरी बार 2007 में माचिस के दाम 50 पैसे से बढ़ाकर 1 रुपए किए गए थे। कीमतों में बढ़ोतरी की वजह माचिस को बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के दामों में बढ़ोतरी है। 5 प्रमुख मैचबाक्स इंडस्ट्री बाडी के प्रतिनिधियों ने हाल ही में शिवकाशी में मीटिंग की थी जिसमें माचिस की एमआरपी बढ़ाने का फैसला लिया गया।
मैन्युफैक्चरर्स ने बताया कि माचिस बनाने के लिए 14 तरह के कच्चे माल का उपयोग किया जाता है। एक किलो रेड फास्फोरस के दाम 425 रुपए से बढ़कर 810 रुपए हो गए हैं। वैक्स भी 58 रुपए के बजाय अब 80 रुपए में मिलता है। आउटर बाक्स बोर्ड के दाम 36 रुपए से 55 रुपए और इनर बाक्स बोर्ड 32 रुपए से 58 रुपए का हो गया है।
10 अक्टूबर से बाक्स बोर्ड, पेपर, स्प्लिंट्स, पोटेशियम क्लोरेट और सल्फर की कीमतें बढ़ गई हैं। इनके अलावा फ्रयूल की कीमतों में बढ़ोतरी ने ट्रांसपोर्ट की लागत को बढ़ा दिया है। इन सभी चीजों ने मैचबाक्स इंडस्ट्री को दाम बढ़ाने के लिए मजबूर किया है।
तमिलनाडु में लगभग 4 लाख लोगों को इस इंडस्ट्री से रोजगार मिलता है। इनमें से 3 लाख लोग प्रत्यक्ष और 1 लाख लोग अप्रत्यक्ष तौर से इंडस्ट्री से जुड़े हैं। डायरेक्ट इम्प्लाई में 90 फीसदी से ज्यादा महिलाएं हैं। माचिस बनाने वालों को बाक्स बनाने की उनकी क्षमता के आधार पर भुगतान किया जाता है। महिलाओं को प्रतिदिन 240 से 280 रुपए और पुरुषों को 300 रुपए से 350 रुपए मिलते हैं।
हालांकि कई लोग मनरेगा के तहत काम करने में रुचि दिखा रहे हैं क्योंकि वहां उन्हें इससे ज्यादा भुगतान किया जाता है। ऐसे में इंडस्ट्री को उम्मीद है कि बेहतर भुगतान करके ज्यादा स्टेबल वर्कफोर्स को अट्रैक्ट किया जा सकेगा। देश में सबसे ज्यादा माचिस का प्रोडक्शन तमिलनाडु में होता है। माचिस के मैन्युफैक्चरिंग सेंटर शिवकाशी, विरुधुनगर, गुडियाथम और तिरुनेलवेली में स्थित हैं।