रविवार, 21 नवंबर 2021

कार्मिकों को सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रोकने का दंड नहीं दिया जा सकता

 कार्मिकों को सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रोकने का दंड नहीं दिया जा सकता



उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण द्वारा वरिष्ठ पुुलिस अधीक्षक-पुलिस महानिरीक्षक का आदेश निरस्त

आईपीएस अधिकारी की शिकायत पर कांस्टेबिल के विरूद्व किया गया था आदेश

संवाददाता

काशीपुर। उत्तराखंड में सरकारी कर्मचारी अधिकारियों के सेवा सम्बन्धी मामलोें का निर्णय करने वाले विशेष न्यायालय (ट्रिब्युनल) की नैनीताल पीठ ने स्पष्ट किया कि कार्मिकों को सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रोकने का दंड नहीं दिया जा सकता है। उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण ने तत्कालीन उधमसिंह नगर जिले में तैनात कांस्टेबिल को एसएसपी उधमसिंह नगर द्वारा दिये गये इस दण्डादेश को निरस्त कर दिया तथा इससेे सम्बन्धित आईजी कुमाऊं के अपील आदेश को भी निरस्त कर दिया।

वर्तमान में नैनीताल जिले में तैनात पुलिस कांस्टेबिल अमित देवरानी की ओर से अधिवक्ता नदीम उद्दीन ने लोक सेवा अधिकरण नैैनीताल पीठ में पफरवरी 2021 में याचिका दायर की। इसमें कहा गया था कि जब कान्स0 अमित देवरानी उधमसिंह नगर जिले की थाना बाजपुर के अन्तर्गत पुलिस चौैकी सुल्तानपुर पट्टी में तैनात थे तो तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक आयुष अग्रवाल (आईपीएस) द्वारा उन पर संदिग्ध गतिविधियांें, अवैैध वसूली आदि की शिकायतें उन्हें लगातार प्राप्त हो रही थी। इसकी लिखित शिकायत वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पास आयी। एसएसपी ने इसकी जांच सीओ बाजपुर से करायी। 

जांच में अवैैध वसूली करने की कोई पुष्टि नहीं हुई। इस शिकायत व जांच को आधार बनाते हुये तत्कालीन एसएसपी बरिंदरजीत सिंह ने अमित देवरानी के पक्ष पर विचार किये बगैर उसे 2019 में निन्दा प्रविष्टि तथा 2018 का सत्यनिष्ठा र्प्रमाण पत्र रोकने का दंड दे दिया। इसकी देवरानी ने तीन माह केे अंतिम दिन अपील की जिसको कालाबाधित लिखित करके उसे संज्ञान में न लेने का आदेश तत्कालीन आईजी जोन जेआर जोशी ने पारित कर दिया। इस पर देवरानी द्वारा अपने अधिवक्ता नदीम उद्दीन के माध्यम से लोक सेवा अधिकरण की नैैनीताल पीठ में दावा याचिका दायर की। 

याचिका में उनके विरूद्व विभागीय दंड के आदेशों को निरस्त करने का निवेदन किया गया। पुलिस विभाग व सरकार की ओर प्रति शपथ पत्रा दाखिल करके दंड आदेशों व अपील आदेश को सही बताते हुये याचिका निरस्त करने की प्रार्थना की गयी। 

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता नदीम उद्दीन ने सुप्रीम कोर्ट के विजय सिंह बनाम स्टेट आफ यूपी के निर्णय की रूलिंग प्रस्तुत करते हुये सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रोकने का दंड देने का अधिकार विभागीय अधिकारी को नहीं होने का तर्क दिया। उन्होंने अपील समय सीमा के अंदर होते हुये गलत निरस्त करने तथा 6 माह तक के अतिरिक्त समय में अपील स्वीकार करने का प्रावधान होने का भी तर्क दिया तथा दंड आदेश तथा अपील आदेश निरस्त होने योग्य बताया। 

अधिकरण के उपाध्यक्ष राजीव गुप्ता की पीठ ने नदीम के तर्कों से सहमत होते हुये अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि सम्बन्धित सेवा नियमावली तथा अधिनियम में सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रोकने का दंड शामिल नहीं है इसलिये यह दंड नहीं दिया जा सकता हैै। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि नियमावली में अपील के लिये तीन माह का समय नियत हैै जिसे अपील अधिकारी द्वारा 6 माह बढ़ाया जा सकता हैै।

अधिकरण के उपाध्यक्ष राजीव गुप्ता की पीठ ने अपनेे निर्णय दिनांक 12-11-21 से सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रोकने सम्बन्धी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक उधमसिंह नगर केेे दण्डादेश को निरस्त कर दिया तथा परिनिन्दा प्रविष्टि के आदेश की अपील आईजी जोन को मुखरित व सकारण आदेश द्वारा निस्तारित करने का आदेश दिया हैै। अधिकरण ने इस क्लेम पिटीशन का फैसला दायर होने से 8 माह के अंदर किया हैै तथा सभी सुनवाईयां आडियो कांप्रफेंसिंग, वर्चुअल के माध्यम से फोन, आनलाइन ही की है।

नदीम ने इस निर्णय का स्वागत करते हुये कहा कि इस निर्णय का लाभ उत्तराखंड पुलिस सहित सभी कार्मिकों को मिलेगा क्योंकि इन सेवा नियमालियों में सत्यनिष्ठा प्रमाण पत्र रोकने के दंड का प्रावधान नहीं हैै तथा अपील की समय सीमा बढ़ाने का प्रावधान हैै जबकि इसका पालन विभिन्न अधिकारियों द्वारा नहीं किया जा रहा हैै।

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