नीदरलैंड के बच्चे दुनिया में सबसे खुशहाल
यहां स्कूली सिस्टम और पेरेंट्स के एटीट्यूड में क्या अलग!
एजेंसी
नई दिल्ली। यूनिसेफ की वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट. के अनुसार यूरोपीय देश नीदरलैंड के बच्चों को सबसे खुशहाल के रूप में आंका गया है। वहां के मां-बाप के वे कौन से तरीके हैं या स्कूली सिस्टम में ऐसा क्या फर्क है कि हमारी मार-पिटाई, डांट-फटकार वाले सिस्टम से अलग जिंदगी वहां के बच्चे जी रहे हैं और ज्यादा खुशहाल हैं।
बच्चों की ये रैंकिंग 41 अमीर देशों की स्टडी के आधार पर तैयार की गई। इसका पैमाना एकेडमिक और सोशल स्किल थी। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य समेत वे सारे पैमाने भी थे जो स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन के लिए जरूरी हैं। नीदरलैंड के बाद डेनमार्क और नार्वे इस लिस्ट में दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं। 41 देशों की इस लिस्ट में सबसे नीचे मिले चिली, बुल्गारिया और अमेरिका है। नीदरलैंड आर्थिक रूप से मजबूत देश है, सामाजिक सुरक्षा के लिहाज से भी वहां सरकारें काफी जिम्मेदारियां उठाती हैं, लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि सिर्फ पैसे से खुशहाली आती है। ऐसा होता तो अमेरिका इतना पीछे नहीं होता।
विशेषज्ञ इसका राज बताते हुए कहते है कि बच्चों के लिए सीमाएं तय करें, प्रेम और और संबंधों में वार्म्थ, कुछ अच्छा करने का मोटिवेशन, साथ ही उन्हें अपने भविष्य का रास्ता चुनने की आजादी दें। यही कुछ रहस्य हैं जो बच्चों की खुशहाली का रास्ता साफ करते हैं। बच्चों से खुलकर बात करें कि वे क्या करना चाहते हैं, क्या कमियां हैं, कैसे उन्हें दूर किया जा सकता है। डच लोग अपने बच्चों से उन मुद्दों पर भी खुलकर बात करते हैं जिन पर एशियाई समाजों में बच्चों और पैरेंट्स के बीच एक दीवार जैसी खड़ी कर दी गई है।
इसके अलावा भी कई ऐसे तथ्य हैं जो तय करते हैं कि बच्चों की जिंदगी खुशहाली भरी होगी या नहीं? जैसे बच्चों पर कितना एकेडमिक बोझ है, कहीं सोशल मीडिया के के प्रभाव में दूसरों के पोस्ट देखकर आप भ्रमित होकर बच्चों पर दबाव तो नहीं बना रहे हैं, क्योंकि जरूरी नहीं कि सोशल मीडिया पोस्ट में लोग जितने चमकते दिख रहे हों वो सच हो। सोशल मीडिया के दौर में मां-बाप के लिए जरूरी है कि वे वास्तविकता की धरातल को पहचानें। बेवजह बच्चों पर दबाव न बनाएं। बच्चों को वो जो बनना चाहते हैं उस दिशा में काम करने की आजादी मिले। वे सकारात्मक माहौल के लिए अपने सही दोस्त चुन सकें। उन्हें हर बात पर जज न किया जाए। खेलकूद की भी उन्हें आजादी मिले।
नीदरलैंड स्कूलों में स्किल लर्निंग के माहौल पर जोर देने वाला देश है। मां-बाप के लिए एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि स्कूल के स्कोर बच्चों को आंकने के लिए कोई आखिरी पैमाना नहीं हो सकता हैं। इसकी बजाय बच्चों में लर्निंग और जिज्ञासा के माहौल को बढ़ाने पर जोर दें। इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर नार्वे है। नार्वे अपने स्कूलों में टूगैदरनेस को बढ़ावा देने देने के लिए जाना जाता है। मतलब अपने साथ-साथ दूसरों को भी प्रगति में मदद करने की आदत। इसके लिए परिवारों का सामुदायिक बेहतरी के कामों में योगदान देने को वहां के समाज में काफी सराहा जाता है।
जबकि एशियाई समाज इसीलिए टूटते चले गए कि हमने न तो परिवारों को संभालने पर ध्यान दिया और न ही समाज में अच्छी आदतों, अच्छे काम और अच्छी पहल को सराहने की पहल की। जो काम हम नहीं करते वो बच्चे कैसे सीखेंगे। हम जो गलतियां खुद करते हैं उन्हें बच्चों को नहीं करने को कहते हैं। आखिर ये कैसे संभव है कि हम गलतियों करें और और बच्चों को रोक पाएं। इसलिए सबसे जरूरी है खुद में बदलाव लाएं और फिर अच्छे बदलावों की सीख बच्चों को दें।
आप सीधे parvatiyanishant.page पर क्लिक कर खबरों एवं लेखों का आनंद ले सकते है।