छह दशक की पत्रकारिता का अनुभव रखने वाला जीवट पत्रकार
एसपी सभरवालः एक युग का पटाक्षेप
चेतन सिंह खड़का
देहरादून। देहरादून के वयोवृद्व पत्रकार शिव प्रकाश (एसपी) सभरवाल का निधन हो गया। वह 88 वर्ष के थे। उन्होंने 9 दिसंबर को अपने निवास में सुबह अंतिम सांस ली। अपने पीछे वे बहन संतोष, पुत्र मनु, पुत्रवधु दलजीत कौर, पौत्रियों नयना और प्रतिष्ठा को छोड़ गए।
अंग्रेजी साहित्य में मास्टर डिग्री लेने वाले सभरवाल वर्ष 1960 के दशक में फिरोजपुर से देहरादून आ गए। उन्होंने पत्रकारिता में 23 वर्ष की आयु में कदम रखा। कालेज की पढ़ाई के दौरान ही 1956 में करंट इवेंट्स नामक राष्ट्रीय अंग्रेजी पत्रिका में अंशकालिक सम्पादक के रूप में यह यात्रा आरम्भ की। तीन वर्ष बाद वे उसी पत्रिका के पूर्णकालिक सम्पादक बने। करंट इवेंट्स पत्रिका को इंग्लिश बुक डिपो के सोहन लाल द्वारा प्रकाशित किया जाता था। सोहन लाल दून के प्रसिद्व नटराज पब्लिकेशन के संस्थापक भी थे।
दस वर्ष तक इसी पत्रिका में काम करने के बाद 1966 में उन्होंने देहरादून के सर्वप्रथम दैनिक समाचार पत्र नार्दन पोस्ट का प्रकाशन शुरू किया। जो उस समय के लोकप्रिय समाचारपत्रों में से एक रहा। 1975 में उन्होंने हिमाचल प्रदेश से हिमाचल स्टार शीर्षक से अंग्रेजी दैनिक निकाला। 1975 में एमरजेंसी कीे दौरान वे देहरादून जेल में 6 माह तक निरूद्व रहे। उस समय उनके प्रेस को सील कर दिया गया।
जेल में उन्होंने तत्समय वहीं निरूद्व प्रोफेसर नित्यानन्द स्वामी से योग का प्रशिक्षण दिया। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने पुनः दोनांे समाचार पत्रों का प्रकाशन सुचारू किया। एसपी सभरवाल उस वक्त के राजनीतिज्ञ ज्ञानी सुजान सिंह और नित्यानन्द स्वामी के काफी निकटवर्ती रहे। उनके साथ उन्होंने रिश्तों को ईमानदारी से निभाया भी। सभरवाल अपने जमाने में एक सफल वकील भी रहे।
अपने जाने के दौरान वे 88 वर्ष के थे। अपने अंतिम दो दशकों में सभरवाल पत्रकारिता के अलावा अपना समय वृद्वावस्था में होने वाली बीमारियों से बचाव तथा उनके सुलभ उपचार की ओर लगा रहे थे। इन उपचार पद्वतियों में चुम्बकों तथा चुम्बक प्रभावित पानी का इस्तेमाल, पित्त व गुर्दे की दिक्कतों के लिए होम्योपैथिक इलाज तथा अनेक बीमारियों में आराम के लिए हाईड्रोजन परौक्साइड यानि आक्सीजन थैरेपी का उपयोग शामिल हैं।
सभरवाल को उनके परिचितों के बीच पत्रकारिता के इनसाइक्लोपीडिया के तौर पर माना जाता था। वे विभिन्न विषयोें में बहुत व्यापक जानकारी एवं ज्ञान रखते थे। अक्सर उनके साथ ज्ञानवर्धक चर्चा के लिए उनके परिचित आया करते थे। लेकिन दुनिया भर के ज्ञान को अपने में समेटे सभरवाल ने खुद को एक सीमित जगह तक समेट लिया था। जबकि वे अपने आप में एक विशाल कैनवास की तरह थे, जहां जितने भी कलेवर, जितने भी रंग भर दो, कम हो जाते है।
पिछले महीने राज्य स्थापना दिवस के दिन विधानसभा में विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा उनको सम्मानित भी किया गया था। हालांकि इन चीजों से बहुत आगे निकल गए थे। जबकि वे चाहते तो बहुत कुछ हासिल करने की क्षमता उनमें थी। लेकिन जैसे उन्होंने सन्यास ले लिया था। संसारिक क्रिया कलापों से उन्हें विरक्ति सी हो गई। लेकिन पत्रकारिता नहीं छूटी। आखिरी समय तक उन्होंने अपना काम नहीं छोड़ा।
अपने काम के प्रति ऐसी प्रतिबद्वता आज के दौर में कम ही देखने को मिलती है। इसलिए कहा जा सकता है कि सभरवाल का जाना एक युग का पटाक्षेप जैसा है। वास्तव में करीब छह दशक से अधिक समय तक पत्रकारिता का अनुभव रखने वाले वे एक जीवट पत्रकार थे जिन्होंने एक प्रतिबद्वता के साथ अपने पेशे को नया आयाम दिया।
उनके सानिध्य में सिखने का अवसर भाग्य की बात है। सभरवाल के अवसान पर उनकी तुलना दून के अंग्रेजी पत्रकारिता के आखिर लाइट हाउस के तौर पर की जा रही है। लेकिन एसपी सभरवाल कोई यों ही नहीं बन जाता। इसके लिए एक लंबी उम्र और उससे भी ज्यादा अपने काम करने के प्रति प्रतिबद्वता और लंबे समय तक एक जगह पर टिके रहने की काबलियत जरूरी है। उनके जाने से जो क्षति हुई वह कभी पूरी नहीं हो सकती।
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