सोमवार, 31 जनवरी 2022

समाचार प्रकाशन जगत में डिजिटलीकरण की दुविधा

 समाचार प्रकाशन जगत में डिजिटलीकरण की दुविधा



डिजिटल राजस्व में 90 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी गूगल और फेसबुक की

एजेंसी

नई दिल्ली। आक्सफोर्ड स्थित रायटर्स इंस्टीट्यूट फार द स्टडी आफ जर्नलिज्म (आरआईएसजे) का द डिजिटल न्यूज प्रोजेक्ट आनलाइन खबरों की पड़ताल करके पत्रकारिता और कारोबार उनके असर का आकलन करता है। इस महीने के आरंभ में उसने एक रिपोर्ट ‘जर्नलिज्म, मीडिया ऐंड टेक्रालजी ट्रेंड्स ऐंड प्रिडिक्शंस 2022’ जारी की। 52 देशों के 246 संपादकों, मुख्य कार्याधिकारियों और डिजिटल नेतृत्वकर्ताओं ने कहा कि वे 2022 में अपनी कंपनी की संभावनाओं को लेकर आश्वस्त हैं। 

आरआईएसजे के वरिष्ठ शोध सहायक निक न्यूमैन ने कहा कि प्रकाशकों का यह भरोसा इसलिए भी है क्योंकि कोविड-19 महामारी के दौरान सबस्क्रिप्शन और सदस्यता माडल लगातार गति पकड़ते रहे। मसलन न्यूयार्क टाइम्स के अब 84 लाख सबस्क्रिप्शन हैं जिसमें 76 लाख डिजिटल हैं। शुरुआत में ऐसा करने वाली कई कंपनियों का डिजिटल राजस्व अब प्रिंट राजस्व को पीछे छोड़ चुका है। लेकिन कई छोटे डिजिटल प्रकाशक मसलन स्लोवाकिया में डेनिक, मलेशिया में मलयसियाकिनी और डेनमार्क में जेटलैंड भी ऐसा कर सकते हैं। भारत में भी ऐसा ही हो रहा है। 

गुणवत्तापूर्ण पत्रकारिता करने में हजारों जमीनी रिपोर्टर, ढेर सारा समय और पैसा लगता है। लंबे समय तक प्रकाशकों ने विज्ञापनों पर भरोसा किया। समाचार पत्रों का 70-80 फीसदी राजस्व अभी भी वहीं से आता है। इंटरनेट के जोर पकड़ने के बाद भी प्रिंट माध्यम का प्रसार और राजस्व दोनों बढ़ते जा रहे हैं। यह बात इसे 1.38 लाख करोड़ रुपये के भारतीय मीडिया और मनोरंजन कारोबार का सबसे अधिक मुनाफे वाला क्षेत्र बनाती है।

काम्सकोर के आंकड़ों के मुताबिक भारत की 20 शीर्ष में से 18 समाचार वेबसाइट बड़े विरासती ब्रांड हैं। फरवरी 2021 में भारत में 46.8 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता थे और गूगल की पहुंच इन तमाम लोगों तक है। फेसबुक का आंकड़ा थोड़ा कम 43.6 करोड़ लोगों का है। 2020 में 23,500 करोड़ रुपये के डिजिटल राजस्व में 90 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी इन दोनों की रही। बाकी बचे सैकड़ों डिजिटल प्रकाशकों के लिए केवल 10 फीसदी हिस्सा बचा। इस पर नियामकों का ध्यान जाना लाजिमी था। आस्ट्रेलिया और प्रफांस में गूगल को प्रकाशकों को भुगतान करने के लिए मजबूर किया गया। भारत में भी प्रकाशकों ने हाल ही में गूगल को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के समक्ष तलब कराया था। 

महामारी ने उस माडल को नष्ट कर दिया। पाठकों की तादाद में तेजी से इजाफा होने के बावजूद विज्ञापन राजस्व में भारी गिरावट आई। फिलहाल भारत में समाचार वेबसाइटों के करीब 10 लाख सबस्क्राइबर हैं। मनोरंजन जगत के ओटीटी प्लेटफार्मों के 10 करोड़ से अधिक सबस्क्राइबर हैं। समाचार प्रकाशकों को उन आंकड़ों तक पहुंचने के लिए कई वर्ष लगेंगे तथा तकनीक और सामग्री पर बहुत पैसा खर्च करना होगा।

देश के सबसे बड़े समाचार एग्रीगेटरों में से एक इनशार्ट्स ने 2019 में पब्लिक नामक एक ओपन प्लेटफार्म शुरू किया। 2021 के आरंभ तक इस पर 60,000 क्रिएटर थे जिनमें वार्ड मेंबर, सांसद, विधायक तथा सैकड़ों छोटे कस्बों के स्थानीय निवासी शामिल हैं जिन्होंने इस पर स्थानीय घटनाओं के छोटे-छोटे वीडियो और खबरें डालीं। गत वर्ष इनशार्ट्स के 7.5 करोड़ विशिष्ट उपयोगकर्ताओं में से 80 प्रतिशत पब्लिक के माध्यम से आए। न्यूमैन कहते हैं कि टिकटाक या शार्ट वीडियो पर समाचारों को लेकर युवा श्रोताओं/दर्शकों की भिड़ंत होगी। लेकिन यह आसानी से झूठी खबरों का गढ़ बन सकता है।

सवाल सीध सा है कि समाचार पत्रकारिता के टूटे हुए माडल की जगह कौन लेगा। सबस्क्रिप्शन अच्छा रुझान है लेकिन विज्ञापन समर्थित हर समाचार कचरा नहीं है। कई ऐसे ब्रांड हैं जहां मालिकों के पास यह दृष्टि और मजबूती मौजूद है कि वे अच्छी पत्रकारिता कर सकें।


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