होयसल मंदिरों के पवित्र स्मारक विश्व विरासत सूची में शिलालेखन के लिए शामिल
भारत के लिए एक महान क्षणः जी किशन रेड्ढी
एजेंसी
बैगलूरू। कर्नाटक में बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा के होयसल मंदिरों को वर्ष 2022-2023 के लिए विश्व धरोहर के रूप में विचार करने के लिए भारत के नामांकन के रूप में शामिल किया गया है। होयसल के ये पवित्र स्मारक 15 अप्रैल 2014 से संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) की संभावित सूची में हैं और मानव रचनात्मक प्रतिभा के उच्चतम बिंदुओं में से एक का प्रतिनिधित्व करने के साथ ही और भारत की समृद्व ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की गवाही भी देते हैं।
चन्नाकेशव मंदिर बेलुरः अब पहला कदम विश्व धरोहर केंद्र में आवश्यक प्रपत्रों को जमा करना है जो उसकी तकनीकी जांच करेगा। यूनेस्को में भारत के स्थायी प्रतिनिधि विशाल वी शर्मा ने 31 जनवरी को औपचारिक रूप से यूनेस्को विश्व धरोहर के निदेशक लाजारे एलौंडौ को औपचारिक रूप से नामांकन प्रस्तुत किया है।
एक बार प्रपत्र जमा हो जाने के बाद यूनेस्को मार्च की शुरुआत में वापस सम्पर्क करेगा। उसके बाद सितंबर/अक्टूबर में स्थानीय मूल्यांकन होगा और जुलाई/अगस्त 2023 में डोजियर पर विचार किया जाएगा।
होयसलेश्वर मंदिर हलेबिदुः केंद्रीय पूर्वाेत्तर क्षेत्र विकास, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्ढी ने कहा कि होयसला मंदिरों के पवित्र स्मारकों को विश्व विरासत सूची में शिलालेखन के लिए शामिल किया जाना भारत के लिए एक महान क्षण है।
मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार विकास और विरासत दोनों के लिए प्रतिबद्व है। विरासत की रक्षा करने के हमारे प्रयास इस बात से स्पष्ट होते हैं कि सरकार हमारी मूर्त और अमूर्त विरासत दोनों को अंकित करने और भारत से चुराई गई या छीन ली गई सांस्कृतिक विरासत को वापस लाने के लिए काम कर रही है।
केशव मंदिर सोमनाथपुरः ये तीनों होयसल मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षित स्मारक हैं और इसलिए इनका संरक्षण और रखरखाव एएसआई द्वारा किया जाएगा। राज्य सरकार इन तीन स्मारकों के आसपास स्थित राज्य संरक्षित स्मारकों के संरक्षण को सुनिश्चित करेगी जिससे कि यह सभी स्मारक एक ही स्थान की दृश्य अखंडता से जुड़ जाएंगे। राज्य सरकार का जिला मास्टर प्लान भी सभी स्मारकों के बफर को शामिल करेगा और एक एकीकृत प्रबंधन योजना का निर्माण करेगा। राज्य सरकार विशेष रूप से निर्दिष्ट संपत्ति के आसपास यातायात प्रबंधन के मुद्दों को भी देखेगी।
12वीं-13वीं शताब्दी में निर्मित और यहां बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा के तीन घटकों द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया होयसल का पवित्र समूह, होयसला के कलाकारों और वास्तुकारों की उस रचनात्मकता और कौशल को प्रमाणित करता है जिसके अंतर्गत तब से अब तक इस तरह की उत्कृष्ट कृतियों का निर्माण पहले कभी नहीं देखा गया। होयसल वास्तुकारों ने अपने कौशल की वृद्वि के लिए भारत के विभिन्न क्षेत्रों से अर्जित मंदिर वास्तुकला के अपने गहन ज्ञान का इस्तेमाल किया।
होयसल मंदिरों में एक मूलभूत द्रविड़ आकारिकी प्रयुक्त की गई है किन्तु यहां मध्य भारत में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली भूमिजा पद्यति, उत्तरी और पश्चिमी भारत की नागर परंपरा और कल्याणी चालुक्यों द्वारा समर्थित कर्नाटक द्रविड़ पद्यति के सुस्पष्ट एवं सुद्रढ़ प्रभाव भो दृष्टिगोचर हैं। इसलिए होयसल के वास्तुविदों ने अन्य मंदिर प्रकारों में विद्यमान निर्मितियों के बारे में सोचा और उन्हें उदारता से अपनाकर और उसमे यथोचित संशोधन करने के बाद उन्होंने इन विधाओं को अपने स्वयं के विशेष नवाचारों के साथ मिश्रित किया। इस सब की परिणिति एक पूर्णरूपेण अभिनव होयसल मंदिर शैली का अभ्युदय होना ही था।