आज की अर्थव्यवस्था में प्रउत सहकारी व्यवस्था (कोआपरेटिव) का होना जरूरी
सहकारिता की सफलता तीन तत्वों- नीतिवाद का कड़ा देखरेख, मजबूत प्रशासन तथा लोगों का हृदय से सहकारिता को स्वीकार करना पर निर्भर
संवाददाता
प्रयागराज। कोरोना की तीसरी लहर को देखते हुए भारत सरकार के कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए वेबीनार के माध्यम से तीन दिवसीय प्रथम संभागीय सेमिनार का आयोजन किया गया। लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, आगरा, देहरादून, हरिद्वार, मेरठ, गाजीपुर, गोरखपुर, पिथौरागड़, गौतम बुद्वनगर, अयोध्या एवं समस्त उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखण्ड के अन्य जनपद के आसपास के सभी आनंद मार्गी घर बैठे ही प्रथम संभागीय सेमिनार का लाभ ले रहे हैं।
प्रथम दिन आनन्दमार्ग प्रचार संघ द्वारा आयोजित संभागीय सेमिनार-2022 के अवसर पर आनन्दमार्ग के वरिष्ठ आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने सहकारी व्यवस्था विषय पर बोलते हुए कहा कि आज की अर्थव्यवस्था में सहकारी व्यवस्था (कोआपरेटिव) का होना अत्यन्त जरूरी हो गया है। उन्होंने प्रउत प्रणेता पी0आर0 सरकार द्वारा प्रतिपादित विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था के पांच सिद्वान्तों का जिक्र किया जिसमें पहला सिद्वान्त कहता है कि एक सामाजिक आर्थिक इकाई के अन्दर के सभी प्रकार के संसाधन स्थानीय लोगों द्वारा गठित इकाई द्वारा ही संचालित किये जायेंगे।
दूसरा सिद्वान्त कहता है कि उत्पादन हमेशा मांग या खपत के आधार पर होना चाहिए न कि मुनाफे के आधार पर। तीसरा सिद्वान्त कहता है कि प्रत्येक वस्तु या उत्पाद का निर्माण एवं वितरण सहकारी समितियों (कोआपरेटिव) के माध्यम से होना चाहिए। चौथा सिद्वान्त कहता है कि सहकारी समितियों के स्थानीय उद्यमों में सिर्फ स्थानीय युवकों को ही नौकरी प्रदान की जाये और पांचवां सिद्वान्त कहता है कि जो वस्तुएं स्थानीय आधार पर नहीं निर्मित की जाती या उगाई जाती, उन वस्तुओं को स्थानीय बाजार से हटा दिया जाये अर्थात आयात ही न किया जाये।
विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था के तीसरे सिद्वान्त के अनुसार सहकारिता तीन तरह के होंगे। उत्पादक सहकारिता, उपभोक्ता सहकारिता एवं वितरक सहकारिता। उत्पादक सहकारी समितियों में शामिल हैं- कृषि आधारित सहकारी उद्योग, कृषि सहायक सहकारी उद्योग, गैर कृषि उत्पाद आधारित सहकारी उद्योग। उपभोक्त सहकारी समितियों में शामिल होंगे- अत्यावश्यक उपभोक्ता वस्तुएं, अर्धआवश्यकीय उपभोक्ता वस्तुएं एवं गैर आवश्यक उपभोक्ता वस्तुएं। इसके साथ ही कृषि सहकारिता एवं कृषक सहकारिता होंगे।
सहकारिता के लिए सहकारिता संघ एवं सहकारिता प्रबन्ध का गठन अत्यावश्यक है। सहकारिता के कुछ मूलभूत सिद्वान्त होंगे और सहकारिता की सफलता मुख्यतः तीन तत्वों पर निर्भर करेगी-नीतिवाद का कड़ा देखरेख, मजबूत प्रशासन तथा लोगों का हृदय से सहकारिता को स्वीकार करना। सहकारी अर्थव्यवस्था के लाभ एवं परिणाम होंगे- बेरोजगारी की समस्या का स्थायी निदान, ग्रामीण लोगों को रोजगार के लिए शहर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
विज्ञान में एक क्रान्ति प्रारंभ करके मानव समाज बहुत तेजी से आगे बढ़ेगा। अतः आज सहकारिता आन्दोलन की शुरुआत करने का उचित समय आ गया है, दूसरा कोई विकल्प नहीं है।