हार की जिम्मेदारी और जीत का श्रेय देने से पीछे क्यों हट रहे यह राजनीतिक दल
हार-जीत के बाद दुविधा में कांग्रेसी और भाजपायी!
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भारतीय जनता पार्टी के दोबारा सरकार बनाने का रास्ता साफ हो गया तो वहीं कांग्रेस के पास आत्म मंथन को समय मिला कि कमी क्या रह गई। हालांकि अब कांग्रेस में जूतमपैजार की नौबत आ गई है। कांग्रेसी खुलकर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर रहें है। लेकिन सबक सिखने को तैयार नहीं कि उनकी हार की एक बड़ी वजह यही आपसी झगड़ा भी है।
वहीं भाजपा के साथ समस्या यह कि उनके सेनापति ने लड़ाई तो फतह करवा दी लेकिन खुद वह हार गया। इससे अवसरवादी नेताओं को अपने लिए स्पेस दिखाई देने लगा तो पद के लिए लार टपकने लगी। इसी का परिणाम है कि हर कोई अपने नाम को आगे करवा ले रहा है कि फलां का नाम सीएम की दौड़ में आगे चल रहा है।
क्या गजब का कंबीनेशन है साहब कि कांग्रेस में हार की जिम्मेदारी लेने को कोई तैयार नहीं है। विचार करने योग्य है कि भीतरघात, किसी के बयान या गलत जगह से टिकट यदि हार का कारण है तो जनाब, आप किस खेत की मूली है जो अपने को राजनीतिज्ञ कहते है। क्योंकि इन्हीं कारणों के दरमियां दो दर्जन से ज्यादा नेता जीते भी है। उनका तो इन सब चीजों से कुछ बिगड़ा नहीं! जबकि उनके लिए भी मुस्लिम यूनीवर्सिटी हानिकारक रही होगी और उनके क्षेत्र में भी बागी चुनाव लड़े थे। भीतरघात खूब हुआ था।
ऐसे में हारे हुए लोग अपनी कमी को स्वीकार करने की बजाय दूसरों पर दोषारोपण कर रहें है। तरह तरह के बहाने बनाए जा रहें है। लेकिन अपनी हार को स्वीकरने में आफत आ रही है। जो हार को स्वीकार भी रहें है उन्हें अपनी हार जनभावना के अनुरूप नहीं लगी रही। संभवतया ऐसे लोगों की हार के कारण उनके इसी प्रवृति में दिख रहें है। भई हार गए है लेकिन वोट तो ठीक ठाक पड़े है। यानि अधिकांश लोग नहीं चाहते थे कि यह जनप्रतिनिधि बने इसलिए कम वोट पड़े। इसका अर्थ यह कि आगे ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है।
इसी तरह भाजपा में जीत कर भी हार पर विमर्श हो रहा है। उनके साथ समस्या यह है कि सेनापति हार गया है। हालांकि बहुत से विधायक सेनापति के लिए अपनी सीट कुर्बान करने को तैयार है। ताकि उनको सीएम बनाया जा सके। लेकिन कुछ लोग सेनापति को सीएम बनाये जाने के पक्ष में नहीं है कि वह हारा हुआ खिलाड़ी है। हालांकि इस पक्ष में न होने के भी अपने निहितार्थ है। उनको इसमें अपने खातिर अवसर दिखाई दे रहा है।
चलो यह तो एक प्रतिद्वंदिता की बात है इसलिए सेनापति को कुछ लोग सीएम नही बनाना चाहते लेकिन आलाकमान को क्या दिक्कत है। कुछ लोग खुदमुख्तयार नेतागण जरूर रायता फैला रहें है। बिना मांगी सलाह भी उनकी तरफ से दी जा रही है लेकिन सेनापति को दरकिनार करना जनभावना को नजरअंदाज करने सरीखा होगा। फिर आपने खुद उनको बतौर सेनापति नियुक्ति किया था। कुल मिलकार लब्बोलुआब यह कि कांग्रेसियों को हार स्वीकारने में और भाजपाईयों में सेनापति को श्रेय देने में संकोच नही होना चाहिये।