जिम्मेदारी (कविता)
ये साली जिम्मेदारी, जी का जंजाल है
इसके बारे में सबका, यही ख्याल है।
काम किये बिना, ढ़ेरों कमाये
न हो जवाबदेही, हर कोई चाहे
ऐसा जनाब लेकिन, होता नही है
काटना चाहे जो, बोता वही है
यह जी हां सच है, इसकी मिसाल है।
ये साली जिम्मेदारी, जी का जंजाल है।
चाहे करे कोई, काम तो होना है
बात ना खुद पे आये, इसका रोना है
काम नही छोटा, सोच हो सकती है
यही बड़ा नसीब, मिल रहीे रोटी है
जीवन पहेली है, ना ही सवाल है
ये साली जिम्मेदारी, जी का जंजाल है।
भागमभाग की जिन्दगी, काम अधूरे रहते है
बेमतलब की दौंड़ है, समय नही है कहते है।
छोटी छोटी जेब हमारी, लालच काफी मोटा है
सिक्का उसका चलता है, यहां जिसका सिक्का खोटा है
गड़बड़झाला दुनिया में, जीना भी कमाल है
ये साली जिम्मेदारी, जी का जंजाल है।
नसीहत तो अक्सर, सभी दिया करते है
खुद अमल हो जाये, ऐसा नही करते है
चरित्र कहां है, उसका तो टोटा है
ज्यादा के फेर में, कुछ नही होता है
मंशा पर यह, सबसे बड़ा सवाल है
ये साली जिम्मेदारी, जी का जंजाल है।
- चेतन सिंह खड़का