बुधवार, 6 अप्रैल 2022

बेरीनाग की चाय को प्रथम स्थान

 आईआईटी रुड़की की 175वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में उन्नत भारत अभियान



बेरीनाग की चाय को प्रथम स्थान

संवाददाता

पिथौरागढ़। आईआईटी रुड़की की 175वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में उन्नत भारत अभियान के सामर्थ्य समारोह में बेरीनाग की चाय को प्रथम स्थान मिला है। बेरीनाग की चाय को ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के साथ मिलकर मिला है। 

बेरीनाग चाय ने ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के साथ मिलकर इस कार्यक्रम में भाग लिया था। बेरीनाग की चाय को उसकी विशेषता, गुणवत्ता के कारण प्रथम स्थान मिला है। इस उपलब्धि से पहाड़ों में चाय क्रांति के माध्यम से रोजगार सृजन करने के प्रयासों को बल मिलेगा। 

बेरीनाग चाय के मालिक विनोद कार्की ने बताया कि बेरीनाग की पहचान चाय से है। अंग्रेजी शासनकाल में चौकोड़ी चाय के बागानों से आच्छादित थे। हजारों हेक्टेयर में फैले चाय बागान के चलते यहां पर चाय की फैक्ट्री थी। अंग्रेजों को बेरीनाग की चाय बहुत भाती थी। तब बेरीनाग में उत्पादित चाय सीधे इंग्लैंड जाती थी। आजादी के बाद देश की सरकारों ने इसे महत्व नहीं दिया। आज भी इसे बेरीनाग टी स्टेट से ही जाना जाता है।

विकास खंड बेरीनाग के पुंगराऊ घाटी के एक छोटे से गांव पांखू निवासी विनोद कार्की ने 7 साल पूर्व सीमित संसाधनों के बीच चाय की नर्सरी बनाई। नायल गांव में 1.78 हेक्टेयर में चाय का बागान तैयार किया। चाय का बागान तैयार होते ही उन्होंने 30 लाख रुपये का ऋण लेकर चाय फैक्ट्री लगाई।

बेरीनाग टी नाम से चाय का उत्पादन शुरू किया। इसके बाद बेरीनाग की यह चाय लोगों की पसंद बन गई। पहले तो स्थानीय लोग ही इसे खरीदते थे। बाद में जिला, मंडल, स्तर से होते हुए राज्य में भी बेरीनाग चाय की पहचान हो गई। बेरीनाग चाय की मांग खाड़ी के देशों तक होने लगी। पहले वर्ष लगभग 8 लाख मूल्य की चाय की बिक्री हुई। दूसरे वर्ष यह 16 लाख तक पहुंच गई।

बेरीनाग टी फैक्ट्री में बिच्छू घास की भी चाय तैयार होती है। बिच्छू घास की चाय बनाने के आसपास के गांवों के ग्रामीणों की आय में वृद्वि हुई है। प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली बिच्छू घास बेरीनाग चायी 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीदता है। इस कारण ग्रामीण जंगलों से बिच्छू घास एकत्रित कर यहां बेचते हैं। बिच्छू घास की चाय और बेरीनाग टी की कीमत 1500 से 2500 रुपए प्रतिकिलो है।

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