स्टडी में दावाः सीखने के लिए भूलना जरूरी
दिमाग अहम जानकारियों तक पहुंच बेकार यादें हटाता है
एजेंसी
नई दिल्ली। अक्सर हम चाबी या कोई कागज रखकर या मोबाइल आदि का बिल भरना भूल जाते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि युवावस्था में भूलने को बीमारी या समस्या मत मानिए, यह भी सीखने की ही एक प्रक्रिया है। यह दिमाग को महत्वपूर्ण जानकारियों तक पहुंचने में मदद करती है।
डबलिन के ट्रिनिटी कालेज और टोरंटो यूनिवर्सिटी के नेतृत्व में हुई स्टडी के मुताबिक इसका यह मतलब नहीं है कि जो बातें इंसान भूलता है वो दोबारा याद नहीं आएंगी। बस दिमाग उन तक पहुंच नहीं पाता।
शोधकर्ताओं का दावा है कि दिमाग ही तय करता है हमें कौन सी चीजें और बातें याद रखनी हैं और किन्हें हम भूल सकते हैं। कुछ यादें स्थायी रूप से न्यूरान्स की टुकड़ियों में जमा होती हैं, वो अवचेतन मन में रह जाती हैं। इसलिए इन बातों को इंसान कभी नहीं भूलता है।
दिमाग ही तय करता है कि कौन सी बात या याद हमारे लिए ज्यादा जरूरी है और उसी हिसाब से वो यादों को जमा करने और उन्हें हटाने का काम करता रहता है। हम अपनी पूरी जिंदगी में अनगिनत यादें बनाते हैं पर इनमें से कुछ ही को याद रख पाते हैं।
आम धारणा यह है कि वक्त के साथ यादें भी धुंधली पड़ती जाती हैं। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसकी वजह दिमाग की स्टोर करने की प्रक्रिया ही है। ट्रिनिटी कालेज में न्यूरोसाइंटिस्ट टामस रायन और टोरंटो यूनिवर्सिटी के पाल प्रफैंकलैंड ने बताया कि अल्जाइमर के मरीजों की बात अलग है। सामान्य लोगों के लिए भूलना फायदेमंद साबित हो सकता है। इससे व्यवहार को ज्यादा लचीला बनाने और बेहतर फैसले लेने में मदद मिल सकती है। स्टडी के नतीजों से बीमारी के कारण खोई हुई यादों को बहाल करना संभव है। अल्जाइमर जैसी बीमारी की स्थिति में भूलने की क्रिया को अपहृत कर लिया जाता है।
डा0 रायन बताते हैं कि यादें न्यूरान्स की टुकड़ियों के रूप में जमा होती हैं। इन्हें एनग्राम सेल्स कहते हैं। यादों का बने रहना या आना इन्हीं टुकड़ियों के रिएक्टिवेशन से होता है। व्यक्ति भूलने तब लगता है, जब एनग्राम सेल्स एक्टिवेट नहीं हो पातीं। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि यादें एक तिजोरी में जमा हो जाती हैं, पर इन्हें अनलाक करने का कोड आपको याद नहीं रहता। यादों का लौटना भी इसी वजह से होता है।