स्वास्थ्यतंत्र की रीढ़ की हड्ढी-नर्सों का स्वयं दुरस्त, खुशहाल रहना आवश्यक है, तभी वे बेहतर देखभाल कर सकेंगी।
इसी विषय पर एक आलेख हरीश बड़थ्वाल का पर्वतीय निशान्त के लिए प्रस्तुत है।
जरूरी है देखभालकर्ताओं की भी सुध लिया जाना
हरीश बड़थ्वाल
नई दिल्ली। अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्रों में दिनरात मरीज तथा अन्य जरूरतमंदों की टहल में कोई निरंतर व्यस्त पाया जाता है तो वह नर्स है। बीमारी या अन्य आपदा से जूझते उन मरीजों की तकलीफ की साक्षी बनना एएनएम, मिडवाइफ सहित देश की 30 लाख नर्सों की रोज की नियति है। पेशेवरों में ऐसा अन्य तबका कौन होगा जो रोगग्रस्तों या उनके परिजनों से तालमेल बनाए रखता है, जैसा माया एंगेल्यू ने कहा, ‘‘नर्स का दायित्व निभाते हमारा सर्वाेपरि कार्य है रोगी और परिजनों के दिल, मन और तन को दुरस्त करना। हमारा नाम भले ही उन्हें याद न रहे किंतु हमारे सानिध्य से उनकी मनोदशा कैसे खुशनुमां हुई, इसकी यादें वे सदा संजोए रहते हैं।’’ आपदा में राहत दिलाने में सबसे पहले मोर्चा संभालने और सबके बाद विदा होने वाली नर्स औपचारिक, निर्धारित कर्तव्य से ज्यादा ही करती है।
कोविड-19 के विश्वव्यापी प्रकोप से बचाव कार्य में विश्वभर की नर्सों ने जो सराहनीय भूमिका निभाई, कुछेक की जान भी चली गई, उसके लिए मानवजाति उनकी उनकी ऋणी है। उनके असाधारण योगदान के लिए कोरोना योद्वा की संज्ञा दी गई। मार्टिन किंग लूथर ने कहा था, जीवन का अहम प्रश्न यह है, ‘‘आप दूसरों के लिए क्या कर रहे हैं?’’ इस पैमाने पर नर्स की भूमिका देवदूत से कम नहीं। जान हाप्किन्स हास्पिटल के सहसंस्थापक विलियम आस्लर की राय में ‘‘डाक्टर तथा धर्मगुरुओं की श्रेणी में आने वाली प्रशिक्षित नर्स मानवजाति के लिए सबसे बड़ा वरदान है’’।
आधुनिक नर्सिंग की संस्थापक फ्लारेंस नाइटिंगेल को श्रद्वांजलि स्वरूप उनकी जन्मगांठ 12 मई का दिन समूची नर्स बिरादरी तथा अन्य स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस बतौर मनाया जाता है। नर्स पेशे को स्वतंत्र विधा के रूप में अस्मिता दिलाने का श्रेय उन्हें जाता है, उन्हें लेडी विद लैंप की संज्ञा दी गई। इस दिन के मुख्य समारोह अंतर्राष्ट्रीय नर्स परिषद (आईएनसी) के तत्वाधान में संपन्न होते हैं। आईएनसी विश्व की 130 राष्ट्रीय संस्थाओं के 2.70 करोड़ नर्सों का प्रतिनिधित्व करता फेडरेशन है। इस दिन के आयोजनों में विश्व के विभिन्न अंचलों में नर्सिंग परिप्रेक्ष्य में एसडीजी लक्ष्यों की प्राप्ति, मौजूदा हालातों का आकलन और भावी रणनीति तैयार की जाती है, नर्सिंग संस्थान संगोष्ठियां, परिचर्चाएं आदि संचालित करती हैं। अपने देश में, राष्ट्रपति भवन में, उत्कृष्ट सेवाओं के सम्मान में चुनींदा नर्सकर्मियों को राष्ट्रीय फ्रलारेंस नाइटिंगेल पुरस्कार प्रदान करते हैं। इस वर्ष नर्स दिवस का पफोकस है, नर्सिंग क्षेत्र में निवेश तथा वैश्विक स्वास्थ्य के लिए उनके अधिकारों का सम्मान। आशय है कि नर्सों की भारी किल्लत के अनुरूप व्यवस्थाएं जुटाई जाएं।
हमारे देश के सभी राज्यों में कार्यरत नर्स छात्रों सहित करीब पांच लाख सदस्यों की 110 वर्ष पुरानी ट्रेन्ड नर्सिस एसोसिएशन आफ इंडिया (टीएनएआई) नर्सिंग शिक्षा, प्रशिक्षण, कौशल संवर्धन तथा नर्सों के हितों का संरक्षण करती देश की सर्वाेच्च संस्था है। स्वास्थ्य मंत्रालय तथा अनेक राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से टीएनआई नियमित कौशल संवृद्वि कार्यक्रम आयोजित करता है।
नर्सों की भारी किल्लत देश की बड़ी चिंता है। राज्यसभा को दी प्रस्तुत जानकारी के अनुसार संप्रति एएनम, मिडवाइफ सहित पंजीकृत नर्सों की संख्या 30 लाख है। 125 करोड़ की आबादी पर नर्स-मरीज अनुपात 1ः658 बैठता है जबकि डब्लूएचओ मापदंड के अनुरूप प्रत्येक इसे 1ः333 होना चाहिए। डब्लूएचओ मानता है कि 2024 तक भारत में 43 लाख अतिरिक्त नर्सें होनी चाहिए। नर्सकर्मियों की कमी का रुग्णता और मृत्युता से सीधा संबंध मानते हुए नर्स नेता लुई कैप्स और किर्स्टेन गिलीब्रैंड उचित संख्या में नर्सों की उपलब्धता की पुरजोर मांग करते रहे हैं। देश में नर्सों की कमी का प्रमुख कारण नर्सों का अपेक्षाकृत कम वेतन और जर्जर कार्यदशा हैं, विशेषकर निजी क्षेत्र में। विकसित देशों में उम्रदारों की तेजी से बढ़ती संख्या और कैंसर, एड्स जैसी बीमारियों में इजाफे से कुशल नर्सों की मांग में निरंतर वृद्वि हो रही है जिसकी आपूर्ति भारत सहित अन्य विकासशील देश करते हैं। फलस्वरूप अवसर मिलते ही भारतीय नर्सें विदेशों का रुख कर लेती हैं।
अनेक कारणों से नर्सिंग को महिलाई क्षेत्र माना जाता रहा है। अभी भी पुरुष नर्स बमुश्किल 10-12 फीसद हैं, इसके बावजूद कि कैमिलस डे लेल्लिस, एडवार्ड लायोन, जो होगन सरीखे अनेक दिग्गज पुरुष नर्सों ने असाधारण योगदान से नर्सिंग परंपरा को समृद्व किया। केमिलस ने पहली बार नाजुक हालात के रोगी को राहत देने के लिए एंबुलेंस परिपाटी का श्रीगणेश किया।
नर्सें अधिक निष्ठा से कार्य करते हुए बेहतर सेवाएं प्रदान करें, इस आशय से पहले उनके अधिकारों का दायरा बढ़े, दूसरा मौजूदा जरूरतों के अनुसार उनके कौशलों में वृद्वि सुनिश्चित की जाए। नर्सिंग स्नातक के साढ़े चार वर्षीय कार्यकाल में उन्हें मेडिसिन, सर्जरी आदि का खासा ज्ञान हो जाता है किंतु गंभीर रोगी को भी आईसीयू में दसियों साल के अनुभव के बावजूद स्वविवेक से सामान्य दर्द निवारक दवा या इंजेक्शन देने की अनुमति नहीं होती, यह प्रथा उनका मनोबल गिराती है। अमेरिका में दो-तिहाई एनेस्थेसिया नर्सें देती हैं, तो अपने देश में ऐसा क्यों नहीं हो सकता?
फ्रलोरेंस नाइटिंगेल की राय में नर्सिंग पेशेवर को उच्च कलाकार की भांति साधना करनी चाहिए और यहां तो उसे जीवंत शरीर से रूबरू होना पड़ता है जो प्रभु का मंदिर है। हमारा कर्तव्य इतना तो बनता है इन देखभालकर्ताओं को उचित सम्मान दें।
हरीश बड़थ्वाल के आलेख उनके ब्लाग www.bluntspeaker.com में उपलब्ध हैं।